Lok Sabha Chunav 2024 : अमरोहा में हाथी, क्यों नही बना मुस्लिमों का साथी ?
Amroha Lok Sabha Chunav 2024 : 2019 के लोकसभा चुनाव में अमरोहा में तेज रफ्तार से दौड़ने वाले हाथी की रफ्तार 2024 में धीमी पड़ गई। मुस्लिम इलाकों में सुबह से ही मतदाता कांग्रेस गठबंधन प्रत्याशी के पक्ष में जाते दिखाई दिए। जुमे की नमाज के बाद मुस्लिम मतदाताओं का रुझान एक तरफा गठबंधन कांग्रेस प्रत्याशी दानिश अली के पक्ष में हो गया। अमरोहा लोकसभा क्षेत्र में एक तरफा मुस्लिमों ने कांग्रेस प्रत्याशी के पक्ष में मतदान किया। हालांकि मुस्लिमो के कांग्रेस की ओर झुकाव के बाद भी बसपा का परंपरागत दलित वोट बसपा की ओर ही जाता दिखा। 2019 के मुकाबले इस बार अमरोहा में वोटिंग परसेंटेज कम हुआ। 2019 में यहां के मतदाताओं ने 73 फीसदी मतदान किया था। जबकि 2024 में मतदान घटकर 64 फीसदी रह गया। कम मतदान से किसको फायदा और नुकसान होगा प्रत्याशी व उनके समर्थक आंकलन में जुटे है।
2019 में बसपा ने दर्ज की थी जीत
2019 के लोकसभा चुनाव में अमरोहा लोकसभा से बसपा के दानिश अली ने जीत दर्ज की थी। यहां तब दलित और मुस्लिमों ने मिलकर बसपा को वोट किया था। तब बसपा का सपा के साथ गठबंधन था। दानिश अली को छह लाख वोट मिले थे। लेकिन इस बार दानिश अली दल बदलकर सपा कांग्रेस गठबंधन के प्रत्याशी के रूप में मैदान में थे। जबकि बसपा ने यहां डासना के मुजाहिद अली को प्रत्याशी बनाया था।
Lok Sabha Chunav 2024 कांग्रेस -भाजपा का सीधा मुकाबला
2024 लोकसभ चुनाव को लेकर शुक्रवार हुए मतदान के बाद सपा- कांग्रेस गठबंधन प्रत्याशी दानिश अली और भाजपा के कंवर सिंह तंवर के बीच कड़ा मुकाबला माना जा रहा है। दानिश अली को एक मुश्त 90 फीसदी मुस्लिम वोटों के साथ यादव व भाजपा प्रत्याशी कंवर सिंह तंवर से नाराज अन्य हिन्दू मतदाताओं के मिलने की बात कही जा रही है। हसनपुर इलाके में नाराज ठाकुर, खागी और सैनी वोटर गठबंधन और बसपा के साथ जाने का फायदा यहां गठबंधन प्रत्याशी को मिल सकता है। राजनैतिक विश्लेषकों की मानें तो 5 फीसदी के करीब भाजपा का परंपरागत वोटर सैनी, खागी, त्यागी, ठाकुर और अन्य बिरादरी के मतदाता भाजपा से छिटके है। जिसका नुकसान भाजपा को हो सकता है।
कमजोर प्रत्याशी बनी हाथी से दूरी की वजह
अमरोहा सीट पर बसपा द्वारा गाजियाबाद के डासना से इम्पोर्ट कर लाये गए मुजाहिद अली को बसपा ने यहां प्रत्याशी बनाया था। जो कमजोर प्रत्याशी साबित हुए। शुरुआत में मुस्लिमो का रुझान बसपा की ओर था लेकिन जैसे जैसे चुनाव करीब आता गया बसपा प्रत्याशी मतदाताओं को अपने साथ जोड़े रखने में नाकाम रहे। बसपा संगठन में आपसी फूट और गुटबंदी के चलते हर रोज चुनाव कमजोर होता चला गया। जिसका फायदा रेस से बाहर दानिश अली ने बखूबी उठाया और मतदाताओं को अपने पक्ष में जोड़ने में कामयाब रहे। यही वजह रही कि बसपा प्रत्याशी की पहचान मुस्लिमों में कमजोर साबित हुई और उसका फायदा गठबंधन प्रत्याशी दानिश अली ने उठाया।
मायावती का दानिश को कोसना पड़ा भारी
21 अप्रैल को अमरोहा में बसपा प्रत्याशी मुजाहिद अली के पक्ष में जनसभा करने आई मायावती का फोकस दानिश अली पर रहा। मायावती ने दानिश को भला बुरा कहते हुए जमकर भड़ास निकाली। इससे मुस्लिम मतदाता दानिश अली के साथ जुड़ता चला गया। क्योंकि संसद में दानिश अली पर भाजपा सांसद द्वारा की गई टिप्पणी से दानिश मुस्लिमो के लिए बेचारे बन गए थे।
मोदी की गारंटी पर मुस्लिमों ने लगाई मोहर
माना जाता है कि मुस्लिम मतदाता भाजपा को वोट नही करते है। वें हमेशा भाजपा के विरोध में ही वोट करते है लेकिन मंडी धनौरा के कुछ मुस्लिम इलाकों में मुस्लिम मतदाता खुलकर भाजपा के पक्ष जाते दिखाई दिए। मुस्लिम बाहुल्य चुचैला कलां, फंदेड़ी सादात व डींगरा और बछरायूं में मुस्लिम मतदाताओं ने भाजपा को खुलकर वोट किया। मोदी की गारंटी पर मोहर लगाते हुए उन्होंने भाजपा प्रत्याशी कंवर सिंह तंवर के पक्ष में मतदान किया।