Zakat-Fitrah : 2.5% जकात गरीबों का हक, अमीरों का फर्ज, जानिए क्या है, क्यों है जरूरी और कैसे दें
जकात साहिबे निसाब औरत हो या मर्द दोनों पर फर्ज है। जकात अपनी आमदनी की कुल 2.5 फीसद देनी है। इसका ईद की नमाज से पहले अदा करना जरूरी है। अगर अदा न कर पाए तो ईद के बाद भी जकात को दिया जा सकता है। जकात ईद से पहले दे या बाद में देना जरूरी है। बिना दिए इससे नही बच सकते है। मुफ्ती तैयब कासमी कहते है कि जकात न देने वाला अल्लाह की नजरों में बड़ा गुनहगार है। इसलिए जब अल्लाह ने माल दिया है और जकात वाजिब हो जाए तो इसे अदा जरूर करें।
Zakat-Fitrah : मुकद्दस रमजान के पाक महीने में एक महीने तक अल्लाह के नेक बंदे अपने रब के हुक्म के मुताबिक रोजे रखते है और इबादत में लीन रहते है। रमजान के इस महीने में जकात की अदायगी भी जरूरी है। जकात किस पर वाजिब है और इसकी गणना कैसे की जाती है इसको लेकर हमने मुफ्ती तैयब अहमद कासमी से बात की है। जानिए उन्होंने क्या बताया-
ईद की नमाज से पहले करें अदा
ईद की नमाज से पहले हर मुसलमान को (Zakat-Fitrah) जकात व फितरा देना जरूरी है। हालांकि ईद से पहले अदायगी नही होने बाद में भी देना जरूरी है। इसमें जकात फर्ज है तो फितरा वाजिब। मुफ्ती तैयब अहमद कहते है कि बेशक, ईद रमजान की सनद है लेकिन फितरा सनद पर खुदा की मोहर की मानिंद है ताकि गरीब इंसान भी ईद की खुशियों में बराबर शामिल हो सके। इसलिए ईद की नमाज से पहले फितरा व जकात देना वाजिब है।
Zakat-Fitrah 2024 जकात किस पर फर्ज़ है ?
जकात हर आकिल व बालिग औरत हो चाहे मर्द दोनों पर फर्ज है। इसके लिए साहिबे निसाब होना जरूरी है। निसाब का अपनी ज़रूरतों से ज़्यादा और क़र्ज़ से बचा हुआ होना शर्त है, वही नीज माल पर एक साल गुज़रना भी ज़रूरी है, लिहाज़ा मालूम हुआ कि जिसके पास निसाब से कम माल है या माल तो निसाब के बराबर है लेकिन वह क़र्ज़दार भी है और कर्ज चुकाएगा तो साहिबे निसाब नही रहेगा या माल साल भर तक बाक़ी नहीं रहा तो ऐसे शख्स पर ज़कात फर्ज नही है।
कौन है साहिबे निसाब
जिस शख्स के पास साढ़े बावन तौले चांदी या साढ़े सात तौले सोना या उसकी क़ीमत का नक़द रूपया या ज़ेवर या सामाने तिजारत में से जो भी जिस शख्स के पास मौजूद है और उस पर एक साल गुज़र गया है तो उसको साहबे निसाब कहा जाता है। औरतों के इस्तेमाली जेवर (Gold) पर भी ज़कात फर्ज़ है। जकात अदा न करना बहुत बड़ा गुनाह है, लिहाज़ा इस्तेमाली ज़ेवर पर भी ज़कात अदा करनी चाहिए।
कितनी जकात अदा करना जरूरी
अपनी कुल आमदनी पर सिर्फ ढाई फीसदी (2.5%) जकात हर साहिबे निसाब को देना जरूरी है। यानी वाजिब है।
सामने तिजारत में क्या क्या शामिल है ?
जकात (Zakat) देने के लिए माले तिजारत में हर वह चीज शामिल है जिसको आदमी ने बेचने की गरज़ से खरीदा हो, लिहाज़ा जो लोग इंवेस्टमेंट की गरज़ से प्लाट खरीद लेते हैं और शुरू ही से यह नियत होती है कि जब अच्छे पैसे मिलेंगे तो उसको बेच करके उससे नफा कमाएंगे, तो उस प्लाट की मालियत पर भी ज़कात वाजिब है।
क्या प्लाट पर भी देनी होगी जकात ?
अगर प्लाट इस नियत से खरीदा है कि अगर मौक़ा हुआ तो उस पर रिहाइश के लिए मकान बनवा लेंगे या मौक़ा होगा तो उसको किराया पर चढ़ा देंगे या कभी मौक़ा होगा तो उसको बेच देंगे, यानी कोई वाज़ेह नियत नहीं है बल्कि वैसे ही खरीद लिया तो इस सूरत में इस प्लाट की क़ीमत पर ज़कात (Zakat) वाजिब नहीं है। अगर प्लाट बेचने के इरादे से खरीदा है तब उस पर जकात वाजिब है।
How to Calculate Zakat Amount – किस दिन की मालियत मोतबर होगी
जकात की अदाएगी के लिए उस दिन की कीमत का एतबार होगा जिस दिन आप ज़कात की अदाएगी के लिए अपने माल का हिसाब लगा रहे हैं। साथ ही जकात के लिए हर रुपए पर साल का गुज़रना ज़रूरी नहीं। एक साल माल पर गुज़र जाए इसका मतलब यह नहीं कि हर साल हर रूपये पर मुस्तक़िल साल गुज़रे, यानी पिछले साल रमज़ान में अगर आप एक लाख रूपये के मालिक थे जिस पर एक साल भी गुज़र गया था।
कौन है जकात के हकदार
जकात उसे ही दी जा सकती है जो साहिबे निसाब नही है। सबसे पहले जकात अपने रिश्तेदार, पड़ोसी और फक़ीर, मिस्कीन, क़र्ज़दार यानी वह शख्स जिसके ज़िम्मे लोगों का क़र्ज़ है और उसके पास क़र्ज़ से बचा हुआ बक़दरे निसाब कोई माल न हो उसको देनी चाहिए। मुसाफिर को भी जकात दे सकते है जो हालते सफर में तंगदस्त हो गया हो।
किन लोगों को ज़कात देना जायज़ नहीं है
- जिसके पास जरूरियात से ज्यादा माल मौजूद हो
- अपने मां
- बाप
- दादा
- दादी
- नाना
- नानी
- बेटे
- बेटी
- पोता
- पोती
- नवासा
- नवासी
- कुफ्र करने वाले
- शौहर
- बीवी
किस को दे सकते है जकात ?
Zakat-Fitrah फितरा क्या है
अमूमन फितरा ईद का चांद देखने के बाद दिया जाता है। मुफ्ती तैयब अहमद कासमी कहते है कि बेहतर यही है कि फितरा चांद देखने से पहले ही अदा कर दे ताकि गरीब लोग भी ईद की खुशियों में शामिल हो सके। जकात व फितरा( Fitrah) का असल मकसद गरीब, मिस्कीन व बेसहारा को भी ईद की खुशियों में शामिल करना है।
फितरा की रकम
जमीयत उलेमा हिंद के नायब तहसील सदर मौलाना वकील अहमद बताते है कि फितरा एक व्यक्ति पर पौने दो किलो गेंहू होता है। पौने दो किलो गेंहू भी अदा कर सकते है या बाजार में गेंहू की कीमत के हिसाब से नगदी भी अदा कर सकते है। अमूमन नकद रुपए के रूप में ही फितरा की रकम अदा की जाती है।
आखिरत का नफा
- एक रूपये के बदले सात सौ गुनाह अज्र मुकर्रर है।
- ज़कात में खर्च गोया अल्लाह के साथ तिजारत करना है, जिसमें किसी नुकसान का अंदेशा नहीं।
- ज़कात क्यामत के दिन हमारे लिए हुज्जत होगी।
- जो शख्स ज़कात व सदका अदा करने वाला होगा उसको जन्नत के खास दरवाजों से दाखिल किया जाएगा।
ज़कात के अहम मसाइल, भैंस की तिजारत
भैंस पर जकात है या दूध पर- अगर कोई शख्स भैंसों की तिजारत करता है तो दूसरे तिजारत के माल की तरह उस पर भी जकात होगी। यानी साल गुजरने पर जितनी कीमत की भैंस होगी उसके 40वें हिस्से की जकात अदा करनी होगी। दरमियान साल में जो कुछ उनको खिलाया या उससे कमाकर खाया उसका कोई हिसाब नही होगा। अगर भैंस की तिजारत नही बल्कि दूध की तिजारत की जाती है तो भैंस पर जकात लाजिम नही होगी। बल्कि दूध की कीमत का जो रुपया साल पूरा होने पर मौजूद है उस पर जकात लाजिम होगी।